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य ए॑नमा॒दिदे॑शति कर॒म्भादिति॑ पू॒षण॑म्। न तेन॑ दे॒व आ॒दिशे॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya enam ādideśati karambhād iti pūṣaṇam | na tena deva ādiśe ||

पद पाठ

यः। ए॒न॒म्। आ॒ऽदिदे॑शति। क॒र॒म्भ॒ऽअत्। इति॑। पू॒षण॑म्। न। तेन॑। दे॒वः। आ॒ऽदिशे॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:56» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः ऋचावाले छप्पनवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में किसको किसके लिये क्या उपदेश करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (करम्भात्) करम्भ करमन्हां नामक अन्न को खानेवाला (देवः) विद्वान् (एनम्) बिजुली आदि रूपवाले (पूषणम्) पुष्टि करनेवाले को (आदिदेशति) सब ओर से अच्छे प्रकार उपदेश करता है (इति) इस प्रकार (तेन) उसके साथ मैं अन्यथा (न) नहीं (आदिशे) सब ओर से प्रशंसा करता हूँ ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सत्य का उपदेश करते हैं, वे सब आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ केन कस्मै किमुपदेष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

यः करम्भाद्देव एनं पूषणमादिदेशति इति तेन सहाऽहमन्यथा नादिशे ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (एनम्) विद्युदादिस्वरूपम् (आदिदेशति) समन्तात् सम्यगुपदिशति (करम्भात्) यः करम्भमन्नविशेषमत्ति सः (इति) अनेन प्रकारेण (पूषणम्) पोषकम् (न) (तेन) (देवः) विद्वान् (आदिशे) अभिप्रशंसे ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सत्यमुपदिशन्ति ते सर्वानन्दं प्राप्नुवन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात उपदेशक, श्रोता व पूषा शब्दाच्या अर्थाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जी माणसे सत्याचा उपदेश करतात ती सर्व आनंद प्राप्त करतात. ॥ १ ॥